आत्मनिर्भरता और आजादी दो अलग अलग चीज़ें हैं। आत्मनिर्भरता हमेशा आज़ादी नहीं लाती। आज़ादी दिल में होती है। अगर तुम यह महसूस नहीं कर सकते की तुम आजाद हो, कुछ नहीं है जो तुम्हे आगे बढ़ कर कुछ भी हासिल करने से रोक रहा है, तो आत्मनिर्भरता कुछ नहीं है। अक्सर ऐसा होता है कि हम बहूत मेहनत करते हैं। दसवीं क्लास से ले कर कॉलेज तक दिन रात पढ़ाई करते हैं। नई नौकरी में जी जान से काम करते हैं। और फिर हम उस जगह पर पहुँच जाते हैं जहाँ वो सपना सामने होता है। बस हाथ बढ़ा कर उसको पकड़ने कि देर होती है। पर उस समय क्या हम सबमे हिम्मत होती है उस सपने को पकड़ने कि? क्या उस समय हम आगे जाने के लिए आजाद होते हैं? वो एक आखरी कदम उठाने के लिए हिम्मत लगती है।
नहीं, ऐसा नहीं होता है। हम में नहीं होती है वह हिम्मत। एक डर होता है। किस बात का, मुझे नहीं पता। शायद खुश होने का डर। मानो या ना मानो, लोगों में अक्सर खुश होने का डर होता है। और सच में खुश होने के किए आजाद होना ज़रूरी है। और आजाद होने के लिए मन से खुश होना ज़रूरी है।
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